बनास नदी के बारे में जानकारी - banas river in hindi
बनास नदी के बारे में जानकारी - banas river in hindi |
बनास नदी एक ऐसी नदी है, जो कि अपना संपूर्ण चक्र राजस्थान राज्य में
ही पूरा करती है।
बनास नदी -
बनास शब्द दो शब्दों से
मिलकर बना है बन + आस = बनास, जिसका अर्थ होता है - वन की आशा |
बनास नदी का उद्गम –
इस नदी का उद्गम
राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले के अरावली पर्वत श्रंखला में कुम्भलगढ़ के पास
खमनौर की पहाड़ी से हुआ है |
बनास नदी के उपनाम –
इस नदी को वर्षाणा नदी,
वशिष्ट नदी और वन की आशा आदि नामों से भी जाना जाता है |
बनास नदी की लम्बाई –
इस नदी की कुल लम्बाई
480 किलो मीटर है और यह नदी अपने उद्गम से संगम तक का सफ़र सिर्फ राजस्थान राज्य
में ही तय करती है |
बनास नदी की सहायक नदियाँ –
बेडच नदी, कोठारी नदी,
मानसी नदी, खारी नदी, मोरेल नदी आदि इसकी सहायक नदियाँ है |
बनास नदी की विशेषता –
यह नदी अपने उद्गम से
लेकर अपने संगम तक का पूरा सफ़र सिर्फ भारत के राजस्थान राज्य में ही तय करती है और
यह नदी प्रवाह के अधर पर राजस्थान राज्य की सबसे लम्बी नदी है |
यह नदी एक बरसाती नदी
है और राजस्थान राज्य में इस नदी का जलग्रहण क्षेत्र सर्वाधिक है |
बनास नदी का महत्व –
यह नदी सिंचाई और पीने
के जल का एक साधन है। इस नदी पर बीसलपुर-जयपुर परियोजना है और यह परियोजना
राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2009 में
पूरी की गई थी |
इस परियोजना के द्वारा
बनास से जयपुर शहर को पीने का पानी प्रदान किया जाता है और इसका कुल जलग्रहण
क्षेत्र 8674 वर्ग किलोमीटर है |
इस नदी के किनारे अनेक
मंदिर स्थित है और इस नदी नदी में अनेक घाट भी है और लोग इस नदी में स्नान भी करते
है |
इस नदी के जल का उपयोग
पीने के लिये किया जाता है और इसके जल से खेतों की सिंचाई भी की जाती है |
बनास नदी पर बांध –
इस नदी पर अनेक बांध
बने हुए है, जिनमें से मातरीकुण्डी बांध (मातरीकुंडिया बांध), बीसलपुर बंद, ईसरदा
बांध, दात्र बांध प्रमुख बांध है |
बनास नदी पर परियोजना –
इस नदी पर राजस्थान में
झाडौल सिंचाई परियोजना स्थित है |
जल का उपयोग –
इस नदी के जल का उपयोग
कृषि-सिंचाई और पेयजल के लिये किया जाता है |
बनास नदी पर त्रिवेणी संगम –
इस नदी पर कुल तीन
त्रिवेणी संगम है
भीलवाडा जिले के बीगोद
में मेनाल नदी, बेडच नदी और बनास नदी का त्रिवेणी संगम होता है |
टोंक जिल के देवली में
बीसलपुर के पास में खारी नदी, डाई नदी और बनास नदी का आपस में त्रिवेणी
संगम होता है |
सवाई माधौपुर जिले में
रामेश्वरम के पास में सीप नदी, बनास नदी और चम्बल नदी का आपस में त्रिवेणी
संगम होता है |
इस प्रकार इस नदी पर
कुल तीन त्रिवेणी संगम है |
अपवाह क्षेत्र –
यह नदी अपना पूरा चक्र
राजस्थान राज्य में ही पूरा करती है और यह नदी राजस्थान राज्य के कुल छः जिलों में
बहने वाली एक नदी है |
यह नदी राजस्थान राज्य
के राजसमन्द जिले से निकलकर चित्तोड़गढ़, भीलवाडा, अजमेर, टोंक में बहती हुई सवाई
माधौपुर जिले के रामेश्वरम धाम के पास में चम्बल नदी में मिल जाती है |
धार्मिक स्थल –
इस नदी के किनारे
रामेश्वर घाट, गोकर्णेश्वर मंदिर, वीरों का मठ, जर्गाजी, मात्रकुंड आदि धार्मिक
स्थल स्थित है |
संगम -
यह नदी अपने उद्गम स्थल
से निकलकर अपना सम्पूर्ण चक्र राजस्थान में पूरा करती है और यह नदी राजस्थान में
नाथद्वारा, राजसमन्द और भीलवाड़ा में बहती हुई टोंक और सवाई माधौपुर बहने के बाद
सवाई माधौपुर के रामेश्वरम के पास में यह नदी चम्बल नदी में समाहित हो जाती है |
इतिहास –
कहा जाता है कि ऋषि वशिष्ठ ने अपनी घोर तपस्या से जनकल्याण
के लिये इस नदी को स्वर्ग लोक से धरती लोक पर उतारा था |
एक बार ऋषि वशिष्ठ ने चिंतित होकर भगवान् शिव से पूछा कि यह
नदी हिमनद के जल के बिना किस प्रकार जीवित रह पाएगी | तब भगवन शिव ने इस को
आशीर्वाद दिया और कहा कि आज से तुम वनों का पोषण करना और वन तुम्हारी रक्षा करेंगे
|
तब से यह नदी वनों का पोषण करती है और इसलिये इस नदी को वन
की आशा कहा जाता है |
यह नदी बरसाती नदी है जिसके कारण इस नदी को वर्षणा नदी भी
कहा जाता है |
कहा जाता है कि ऋषि वशिष्ट ने इस नदी को स्वर्गलोक से
धरतीलोक पर लेकर आये थे इसलिये इसे वशिष्ट नदी भी कहा जाता है |