भगवद्गीता के पहले अध्याय का दूसरा श्लोक
भगवद्गीता के पहले अध्याय का दूसरा श्लोक, bhagwat geeta chapter 1 shloka 2 explained in hindi |
श्रीमद् भगवद्गीता
भगवद्गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो पिछले 5000 वर्षों से आज भी प्रासंगिक है |
इसमें लिखी हुई बातें आज भी कहीं ना कहीं हमारे जीवन में उपयोग में लाई जाती है |
चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो व्यापार में हो नौकरी में हो या फिर घर गृहस्थी में क्यों ना हो |
पहला अध्याय
आज हम भगवद्गीता के पहले अध्याय यानी अर्जुन विषाद योग नामक अध्याय के बारे में पढ़ेंगे जो किस प्रकार इस प्रकार है |
श्लोक नंबर 02
इस श्लोक के माध्यम से संजय, धृतराष्ट्र से कहते हैं कि -
सञ्जय उवाच -
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् || २ ||
शब्दार्थ -
दृष्ट्वा - देखकर, तु - किंतु, पाण्डवानीकं - पांडव सेना व्यूढं - व्यूह रचना में खड़े होना, दुर्योधन - राजा दुर्योधन, स्तदा - तब, आचार्यम् - गुरु (द्रोणाचार्य), उपसंगम्य - पास जाकर, राजा - राजा, वचनम् - शब्द, अब्रवीत - कहा ||
संजय बोले - उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूह रचना युक्त पांडवों की सेना को देखकर और गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा ||
यानि -
जब राजा दुर्योधन ने युद्ध भूमि कुरुक्षेत्र में पांडवों की सेवा को देखा तो वह भयभीत हो उठता है और फिर उसने अपने सेनापति गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर उसने यह शब्द कहा ||