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gandaki river के बारे में udgam से लेकर sangam तक की पूरी जानकारी

gandaki river के बारे में udgam से लेकर sangam तक की पूरी जानकारी
gandaki river in hindi


Gandaki river in hindi – नमस्कार दोस्तों, कैसे हैं आप सभी,

उम्मीद करता हूँ कि आप सभी कुशल मंगल होंगे |

 

आज हम इस पोस्ट के माध्यम से gandaki nadi in hindi के बारे में बात करने वाले है और

यह पोस्ट हमारे ज्ञान और अनुभव के द्वारा प्रकाशित की गयी है तथा

हमारा उद्देश्य केवल इस नदी के बारे में जानकारी प्रदान करना है |

 

अब अगर gandaki nadi के बारे में बात की जाती है तो

यह नदी नेपाल और भारत के बिहार राज्य में बहने वाली नदी है |

 

Gandaki river origin

यदि हम बात करते हैं कि gandaki nadi ka udgam sthal कहाँ पर है तो

इसके जवाब में कहा जा सकता है कि

यह नदी नेपाल के न्यू बिन हिमाल ग्लेशियर से उत्पन्न हुई है |

 

इस नदी के उदगम स्थल पर गंडकी शक्ति पीठ है और

इस पीठ को मुक्ति दायिनी माना गया है |

 

Length of gandaki river

अब अगर gandaki nadi ki lambai की बात की जाये तो इसके जवाब में कहा जा सकता है

कि इस नदी की कुल लंबाई लगभग 1310 किलोमीटर है और भारत में इसकी लंबाई लगभग 425 किलोमीटर है |

 

Other name of gandaki river

अगर कहा जाता है कि गण्डकी नदी को किन-किन नामों से जाना जाता है तो इसका जवाब होगा

कि इस नदी को गण्डकी के अलावा गंडक नदी या बड़ी गंडक नदी भी कहा जाता है और

नेपाल में इसे सालिग्रामी या सालीग्रामी और मैदानों में इसे सप्तगंडकी और नारायणी भी कहा जाता है |

 

Gandaki river tributaries

यदि इस नदी की सहायक नदियों की बात की जाती है तो

काली गंडक और त्रिशूलीगंगा इस नदी की सहायक नदियां है |

 

Where is gandaki river

अब अगर कहा जाता है कि गण्डकी नदी कहाँ पर है या फिर इसका अपवाह क्षेत्र कहाँ पर है

तो इसके जवाब में कहा जा सकता है कि,

यह नदी हिमालय से निकलकर दक्षिण पश्चिम बहती हुई भारत में प्रवेश करती है और

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज और कुशीनगर जिलों से होकर बहती है और फिर

बिहार राज्य के चंपारण, सारण, मुजफ्फरनगर से बहती हुई अंत में पटना तक बहती है |

 

Gandaki nadi ki visheshta

अगर गण्डकी नदी की विशेषता की बात की जाती है

तो इसके जवाब में कहा जा सकता है कि

यह नदी मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में स्थित है और

यह काली और त्रिशूली नदियों के संगम से बनी है,

 जो कि नेपाल की उच्च हिमालय पर्वत श्रेणी से निकलती है |


gandaki river के बारे में udgam से लेकर sangam तक की पूरी जानकारी
narayani nadi in hindi

बूढ़ी गंडकनदी एक प्राचीन जलधारा है,

 जो कि गंडक के पूर्व में इसके समानांतर बहती है और

इस नदी को संगम स्थल से लेकर भारतीय सीमा तक नारायणी कहा जाता है |

 

Gandaki nadi ka sangam

अब बात आती है गण्डकी नदी के संगम की और यदि आपसे पूछा जाता है कि

इस नदी का संगम कहाँ पर हुआ है तो हो सकता कि आपको इसका जवाब पता हो और

यदि आपको इसका जवाब पता नदी है तो फिर चिंता की कोई बात नहीं है

क्योंकि यह नदी दक्षिण पश्चिम दिशा में भारत की ओर बहती है और फिर

उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा के साथ गंगा के मैदान में दक्षिण पूर्व दिशा में बहती है और

इस तरह से यह नदी 765 किलोमीटर लंबे घुमावदार रास्ते से गुजरती हुई

पटना के समीप गंगा नदी में मिल जाती है |

 

Gandaki  river dam

यह बिहार और उत्तर प्रदेश की संयुक्त नदी घाटी परियोजना है और

भारत नेपाल के अंतर्गत नेपाल को भी इसका लाभ है |

 

इस परियोजना के अंतर्गत गंडकी नदी पर त्रिवेणी नाहर हैंड रेगुलेटर के नीचे

बिहार के वाल्मीकि नगर में बैराज बनाया गया और

इस बैराज से चार नहरें निकलती है,

जिसमें से दो नहर नेपाल और दो नहर भारत में है |

 

यहां पर 15 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है तथा

यहां से निकाली गई नहरें चंपारण के अलावा भी

उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से यह सिंचाई करता है |

 

वाल्मीकि नगर का बैराज का निर्माण सन 1969-70 मैं हुआ

और इसकी लंबाई 747.37 मीटर एवं ऊंचाई 9.81 है और

इस बैराज का आधा भाग नेपाल में है |

 

Gandaki river shaligram in hindi

अब बात आती है gandaki  nadi ke shaligram की तो इसका जवाब होगा कि

सनातन धर्म के अनुसार इसके कण-कण में ईश्वर का वास होता है और

भगवान विष्णु को शालिग्राम के रूप में पूजा जाता है |

 

जिस पत्थर में भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है,

उसे shaligram कहा जाता है |

 

Gandaki  river story in hindi

शिवपुराण के अनुसार –

एक समय की बात है कि पुराने ज़माने में दंभ नाम का एक दैत्यों का राजा हुआ करता था,

जो कि भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा भक्त हुआ करता था |

 

उस राजा के यहाँ एक भी संतान नहीं थी,

जिसकी वजह से उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बना लिया और फिर

उनसे उसने श्री कृष्ण मन्त्र प्राप्त किया |

 

मन्त्र प्राप्त करने के बाद उसने पुष्कर सरोवर में घोर तपस्या की और

उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया |

 

कुछ समय बाद भगवान विष्णु के वरदान की वजह से

राजा दंभ के यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ और उसका नाम शंखचुड रखा |

 

बड़ा होने के बाद शंखचुड ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की

और फिर ब्रह्मा जी ने उसकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर उसे माँगने को कहा |

 

इसके बाद उसने अमर होने का वरदान माँगा तो ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया और

कहा कि आप बदरीवन में जाओ और वहां पर धर्मध्वज की बेटी जो तपस्या कर रही है

आप उससे विवाह कर लीजिये |

 

इसके बाद शंखचुड ने तुलसी के साथ विवाह कर लिया और फिर दोनों सुखपूर्वक रहने लगे |

 

बाद में उसने अपने बल से देवताओं, असुरों, दानवों, गन्धर्वों,

नागों, किन्नरों, मनुष्यों और त्रिलोकी के सभी प्राणियों पर विजय हासिल कर ली |

 

शंखचुड के अत्याचार से देवता परेशान होकर ब्रम्हा जी के पास गए और फिर

इसके बाद ब्रम्हा जी उसे भगवान विष्णु के पास ले गए |

 

तब भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचुड की म्रत्यु शिव के त्रिशूल से होगी,

इसलिये आप उनके पास जाइये |

 

gandaki nadi ki katha 

इसके बाद भगवान शिव ने चित्ररथ नामक अपने एक गण को शंखचुड के पास भेजा और

गण ने उसे बहुत ही समझाया कि वो देवताओं को उनका राज्य वापस कर दे,

लेकिन उसने ऐसा करने से मना कर दिया और फिर

उसने गण से कहा कि वो भगवान शिव से युद्ध करना चाहता है |

 

यह बात जब भगवान शिव को पता चली तो वे अपनी सेना लेकर युद्ध करने के लिए चल पड़े

और फिर इस तरह से देवताओं और दानवों में भीषण युद्ध हुआ,

लेकिन ब्रम्हा जी के वरदान की वजह से देवता भी शंखचुड को पराजित नहीं कर पाये |

 

इसके बाद भगवान शिव ने शंखचुड का वध करने के लिए जैसे ही त्रिशूल उठाया,

ठीक उसी समय आकाशवाणी हुई कि- जब तक इसके हाथ में श्रीहरी का कवच है और

इसकी पत्नी का सतीत्व अखंडित है, तब तक इसका वध करना असंभव है |

 

इसके बाद भगवान विष्णु ब्राम्हण का रूप धारण करके शंखचुड के पास चले गए और फिर

उससे श्रीहरी का कवच दान में मांग लिया |

 

इसके बाद उसने निःसंकोच कवच दान में दे दिया 

और फिर इसके बाद भगवान विष्णु शंखचुड का रूप धारण करके तुलसी के पास गए |

 

इसके बाद शंखचुड रूपी विष्णु ने तुलसी के द्वार पर जाकर विजय होने की सुचना दी और

ऐसा सुनते ही तुलसी बहुत ही प्रसन्न हो गयी और फिर

पतिरूप में आये भगवान का पूजन एवं रमण किया |

 

ऐसा करते ही उसका सतीत्व खंडित हो गया और फिर

इसके बाद भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचुड का वध कर दिया |

 

narayani nadi ki katha

जब इस बात का पता तुलसी को चला तो उसने क्रोधित होकर छल से धर्मंभ्रष्ट करने एवं

शंखचुड को मारने के लिए भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आप पाषाण होकर धरती पर रहें |

इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि देवी आपने मेरे लिए काफी तपस्या की है,

इसलिये आपका यह शरीर नदी के रूप में बदलकर गण्डकी नदी के नाम से प्रसिद्ध होगा |

 

आप पुष्पों में सदैव श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और फिर आप सदैव मेरे साथ रहेगी |

 

मैं आपके श्राप को पूरा करने के लिए पाषाण यानि शालिग्राम बनकर धरती पर रहूँगा और

गण्डकी नदी में मेरा सदैव ही वास रहेगा |

 

कहा जाता है कि देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन शालिग्राम और

तुलसी का विवाह संपन्न करके मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जाती है तथा

हिन्दू धर्म के अनुसार इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह करने पर अपार पुन्य प्राप्त होता है |

 

FAQs

गण्डकी नदी किसकी सहायक नदी है ?

अगर कहा जाता है कि गण्डकी नदी किसकी सहायक नदी है तो 

इसके जवाब में कहा जा सकता है कि यह नदी गंगा नदी की एक सहायक नदी है |

 

गण्डकी नदी कहाँ पर है ?

यह नदी नेपाल और भारत देश के बिहार राज्य में बहती है |


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