राजाराम मोहन रॉय ने समाज में प्रचलित प्रथाओं में सुधार लाने का काम किया और विशेष रूप से जाती प्रथा एवं सती प्रथा का विरोध किया।
जन्म-
राजाराम मोहनराय का जन्म 22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के राधानगर गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम तारिणी देवी और उनके पिता का नाम रमाकांत राय था।
राजाराम मोहन राय ने सन 1802 फ़ारसी भाषा में एकेश्वरवाद के समर्थन में ' टुफरवूल मुवादीन ' नामक पुस्तक लिखी। 1816 में उनकी पुस्तक " वेदांत सार " प्रकाशित हुई। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में रंगपुर में उनकी नौकरी लगी, वे रंगपुर में कलेक्टरी के दीवान बन गए।
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राजा राम मोहन रॉय की शिक्षा |
राजाराम मोहन राय पत्रकारिता का संपादन करते थे उन्होंने अपने जीवन में पत्रकारिता का काफी ज्ञान हासिल किया जैसे - ब्रम्हामैनिकल मैगज़ीन, संवाद कौमुदी, मिरात-उल-अखबार और बंगदूत ( एकेश्वरवाद का उपहार)
बंगदूत में एक साथ बांग्ला, हिंदी और फारसी भाषाओँ का प्रयोग किया जाता था।
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ब्रम्ह समाज
राजाराम मोहनराय ने ब्रह्म समाज की स्थापना सन 1828 में की थी, यह एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषाई प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण- सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता रह चुके थे। उन्हें आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। साथ ही उन्हें बंगाल के नवजागरण युग का पितामह भी कहा जाने लगा।गोदावरी नदी का जीवन परिचय
देशहित में काम करना -
राजाराम मोहनराय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी करते थे, उन्होंने देश की सेवा के लिए दीवान की नौकरी छोड़ दी और देश की सेवा में जुट गये।स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए वे अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। वहीँ दूसरी तरफ वे अपने देश की जनता से अंधविश्वासों और कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। उन्होंने अंधविश्वासों और कुरीतियों का जमकर विरोध किया।
राजाराम मोहनराय ने जातिप्रथा और सतीप्रथा का जमकर विरोध किया, इन विरोधों में काफी लोगों ने उनकी सहायता भी की। एलेक्जेंडर डफ्फ ने धर्म प्रचार में काफी सहयोग प्रदान किया।
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महिलाओं के प्रति सहानुभूति -
राजाराम मोहनराय ने अपने जीवन में महिलाओं को हक़ दिलाने के लिए काफी संघर्ष किये। उस समय महिलाओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय थी और उनके हृदय में महिलाओं के प्रति दर्द का एहसास था।
उस समय समाज में सती प्रथा का प्रचलन था और वे सतीप्रथा को समाज से हमेशा के लिए हटाना चाहते थे। एक बार वे किसी काम से विदेश गये हुए थे और इसी बीच उनके भाई की मृत्यु हो गयी और समाज ने सतीप्रथा के नाम पर उनकी भाभी को जिन्दा जला दिया।
सती प्रथा एवं जाती प्रथा का विरोध |
विदेश से आने के बाद उन्होंने संकल्प लिया कि जो उनकी भाभी के साथ हुआ वह अन्य किसी महिला के साथ नहीं होने देंगे और फिर उन्होंने सतीप्रथा का जमकर विरोध किया और लार्ड विलियम बैंटिक की मदद से उन्होंने सन 1829 में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाया।
सतीप्रथा पर रोक लगाने वाले कानून को बदलने के लिए सन 1830 में वे मुग़ल साम्राज्य का दूत बनकर ब्रिटेन भी गये थे।
कुल मिलाकर-
राजाराम मोहनराय ने भारत की प्रथाओं में सुधार लाने के लिए काफी प्रयास किया। उन्होंने विशेष रूप से जाती प्रथा और सती प्रथा का विरोध किया और अनेक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना की।
उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका एक उद्देश्य हिन्दुओं को क्रिश्चन धर्म स्वीकार करने से सुरक्षित रखना था। ब्रह्म समाज ने अकाल के समय में लोगो की सहायता, बालिका शिक्षा, महिलाओं के उत्थान एवं दान के प्रोत्साहन से सम्बंधित कार्य किये।
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