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शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River

शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River

शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River
शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River

शिप्रा नदी एक पवित्र नदी है और यह नदी भारत का ह्रदय कहलाने वाले राज्य मध्य प्रदेश में बहती है और इस नदी के किनारे कुम्भ का मेला भी आयोजित किया जाता है |

 


    शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River

    शिप्रा नदी मध्य प्रदेश में बहने वाली एक प्रमुख नदी है, यह एक पवित्र नदी है और इसके किनारे हर बारह वर्ष में कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है जिसे हम सिंहस्थ भी कहते है |

    यह एक ऐतिहासिक नदी है और इस नदी के तट पर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर उज्जैन में स्थित है |


    शिप्रा नदी का उद्गम –

    इस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर की काकरी बरडी नामक एक पहाड़ी से हुआ है और यह नदी अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है |

     

    शिप्रा का मतलब –

    कुछ लोगों के अनुसार शिप्रा का मतलब गाल, जबड़े और नाक है लोगों ने इसका अर्थ निकालते हुए कहा है कि यह एक पवित्र नदी है |

     

    Shipra nadi की लम्बाई –

    शिप्रा नदी इंदौर जिले की काकरी बरडी नामक पहाड़ी से निकलती है और यह नदी 195 किलो मीटर का सफ़र तय करते हुए चम्बल नदी में मिलती है |

     

    Shipra nadi की सहायक नदियों के नाम -

    इस नदी की सहायक नदियाँ अनेक है जिनका नाम खान नदी, गंभीर नदी, गांगी नदी, लूनी नदी और ऐन नदी है |

     

    शिप्रा किनारे बसे शहर –

    शिप्रा नदी इंदौर जिले के काकरी बारडी नामक स्थान से निकलती है और देवास जिले में बहती हुई उज्जैन जिले में प्रवेश करती है |

    उज्जैन शहर से शिप्रा बहती हुई मंदसौर जीले में प्रवेश करती है और फिर आगे चलकर मंदसौर जिले में ही यह नदी 195 किलो मीटर का सफर तय करते हुए चम्बल नदी से मिलती है |

    इस प्रकार शिप्रा नदी इंदौर जिला, देवास जिला, उज्जैन जिला और मंदसौर जिला में बहती है यह इन चारों जिलों में बहती है |  

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    शिप्रा नदी का क्या महत्व है 

    शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River
    शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River

    शिप्रा नदी का काफी महत्व है इस नदी के किनारे लोग दूर दूर से स्नान करने के लिए आते है |

    कहा जाता है कि इस नदी के स्पर्श मात्र से व्यक्ति के ज्वर समाप्त हो जाते है और स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते है |

    शिप्रा नदी के किनारे हर बारह साल में कुम्भ का मेला भी आयोजित किया जाता है जिसे हम सिंहस्थ भी कहते है और यह कुम्भ सबसे बड़ा कुम्भ मन जाता है |

    शिप्रा नदी की पूजा भी की जाती है और लोग यंहा पर स्नान करने भी आते है लोग इस नदी के किनारे अन्तिम संस्कार की इच्छा भी व्यक्त करते है कहते है कि इसके तट पर मोक्ष की प्राप्ति होती है |

    भगवान श्री कृष्ण ने इसी नदी के तट पर स्थित संदीपनी आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी और वे लकड़ी लेने के लिए नारायणा धाम में भी गये थे जो उस समय एक जंगल था |

    इसके किनारे कई घाट है जिनका काफी महत्व है और इसमें से एक घाट रामघाट की बात करें तो कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने इसी घाट पर उनके पिता दशरथ का श्राद्ध और तर्पण किया था |

    संस्कृत भाषा के महाकवि कालिदास ने इसी नदी के किनारे बैठकर “मेघदूत” ग्रन्थ की रचना की थी | राजा विक्रमादित्य भी इसी नदी के तट पर अवंतिकापुरी में राजा हुआ करते थे |

     

    शिप्रा नदी के जल का उपयोग -

    इस नदी के जल का उपयोग पिने के पानी के लिए किया जाता है और लोग इस नदी के जल से सिंचाई भी करते हैं |

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    शिप्रा नदी की विशेषता –

    शिप्रा नदी की विशेषता है कि इस नदी के किनारे अनेक घाट है और यह नदी महाकालेश्वर के समीप है यह एक पवित्र नदी भी है |

    इस नदी की पूजा भी की जाती है और इस नदी में लोग दूर दूर से स्नान करने के लिए आते हैं | इस नदी के किनारे अनेक मंदिर भी स्थित है |

    शिप्रा के तट पर बसा हुआ शहर उज्जैन जिसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है उज्जैन में अनेक मंदिर है |

    महाकालेश्वर मंदिर, चिंतामण गणेश मंदिर, गोपाल मंदिर, गडकलिका मंदिर आदि अनेक मंदिर है जो उज्जैन में स्थित है और जिनके कारण उज्जैन को भी एक धार्मिक शहर भी कहा जाता है |


    पौराणिक कथाओं के अनुसार  (Shipra nadi) –

    कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक ऋषि हुआ करते थे, जिनका नाम अत्रि था | कहा जाता है कि ऋषि अत्रि ने अवंतिकापुरी (वर्तमान उज्जैन) में हजारों वर्षो तक तपस्या की और जब उनकी तपस्या पूरी हुई तो ऋषि अत्रि ने अपनी आंखे खोली |

    जब ऋषि अत्रि ने अपनी आंखे खोली तो उनके तन से दो जलधाराएं बहने लगी उनमें से एक जलधारा अंतरिक्ष की ओर चली गयी और चन्द्रमा का स्वरुप बन गयी | दूसरी जलधारा पृथ्वी लोक पर ही बहने लगी, जिसे आज हम शिप्रा नदी के नाम से जानते हैं |

     

    एक ओर कथा के अनुसार – कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने परमपिता ब्रह्मा जी से भिक्षा ली और फिर वे भिक्षा लेने के लिये भगवान विष्णु के पास पंहुचे |

    भगवान विष्णु ने अपनी अंगुली दिखाते हुए भगवान शिव को भिक्षा प्रदान की, जिससे भगवान शिव नाराज हो गये और फिर उन्होंने अपने त्रिशूल से विष्णु जी की ऊँगली पर प्रहार किया |

    भगवान विष्णु की अंगुली से रक्त की धारा बहने लगी और धरती लोक पर गिरने लगी, कहा जाता है कि भगवान विष्णु की अंगुली से निकली हुई रक्त की धारा धरती पर शिप्रा नदी के रूप में बहने लगी |

     

    महाकवि कालिदास के अनुसार – संस्कृत भाषा के महान विद्वान् महाकवि कालिदास ने अपने ग्रन्थ “मेघदूत” में शिप्रा नदी के बारे में कहा है कि यह नदी अवंती राज्य की प्रधान नदी है | महाकाल की नगरी अवंतिका (वर्तमान उज्जैन ) भी इसी के तट पर बसा है |

     

    स्कन्ध पुराण के अनुसार – इस नदी का बहाव काफी तेज है और इसी तेज बहाव के कारण इसका नाम शिप्रा नदी पड़ा है यह नदी इंदौर जिले की काकरी बरडी नामक पहाड़ी से निकलती है  और आगे चलकर चम्बल नदी में समाहित हो जाती है |

     

    शिप्रा नदी के नाम –

    शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River
    शिप्रा नदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी – Information about Shipra River

    शिप्रा नदी के अनेक नाम है और इस नदी के नाम के बारे में अनेक कथाओं से जानकारी मिलती है |

    वर्तमान में शिप्रा नदी को “शिप्रा” कहा जाता है कुछ लोग इसे “क्षिप्रा” भी कहते है मालवा क्षेत्र में ग्रामीण लोग इसे “सपराजी” भी कहते है | यह नदी उज्जयिनी के तीन ओर से बहने वाली नदी है इसलिये इसे “करधनी” भी कहा जाता है | साथ ही शिप्रा नदी को मालवा की गंगा भी कहा जाता है |

     

    शिप्रा नदी को “ज्वरघ्नी” भी कहा जाता है | कहते हैं कि बाणासुर श्री कृष्ण से युद्ध के अवसर पर माहेश्वर ज्वर और वैष्णव ज्वर से पराजित होकरभाग गया और फिर शिप्रा नदी में डुबकी लगाईं, जिससे उसका ज्वर शांत हो गया | मान्यता है कि शिप्रा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को ज्वर बाधा नहीं होती है इसलिये इसे ज्वरघ्नी भी कहा जाता है |

     

    कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष को मारकर धरती का उद्धार किया | कहा जाता है कि भगवान वराह के ह्रदय से शिप्रा नदी का उद्गम हुआ, इसलिये इसे “ब्रह्मा समुद्भवा” भी कहा जाता है |

     

    एक बार कीहट देश में दमनक नाम का राजा हुआ करता था वह बहुत ही पापी और दुराचारी था | एक बार जब वह शिकार पर गया तब वह अकेला जंगल में भटक गया और फिर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया |

    कुछ देर बाद पेड़ से एक साँप गिरा और उसने राजा को डस लिया और राजा वंही पर मर गया | अब राजा पापी था, तो यमदूत भी उसे दंड देने लगे और उस राजा को शव को जानवर नोच-नोचकर खाने लगे |

    तभी एक कोआ मांस का टुकड़ा लेकर उड़ गया और अन्य कोए भी वह मांस का टुकड़ा छिनने लगे | इसी छिना- झपटी में वह टुकड़ा चोंच से छुट गया और वह शिप्रा नदी में गिर गया, नदी में गिरते ही वह राजा शिवरूप हो गया और उसके सारे पाप धुल गये |

    कहा जाता है कि इस नदी के स्पर्श मात्र से ही व्यक्ति पाप से मुक्त हो जाता है, इसलिये इसे “पापघ्नी” भी कहा जाता है | 

     

    कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव नागलोक की भोगवती नगरी में भिक्षा लेने के लिये गये, भिक्षा नहीं मिलने पर नगरी से बाहर अमृत के इक्कीस कुण्ड थे, वे वंहा गये और फिर भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से अमृत का पान कर लिया और सभी कुण्ड को खाली कर दिया |

    इस घटना के बाद समस्त नाग गण डर गये और फिर भगवान विष्णु का ध्यान करने लगे, तब उन्हें आकाश वाणी के माध्यम से भगवान विष्णु ने पूरी घटना के बारे में बताया और फिर कहा कि आप सभी महाकाल वन में जाकर शिप्रा नदी में स्नान करें और भगवान महाकाल की अराधना करें |

    नागों ने शिप्रा में जाकर स्नान किया और फिर भगवान महाकाल की अराधना की, नागों की भावना से भगवान महाकाल प्रसन्न हो गये और कहा कि आप अपने पिछले पुण्य से ही यंहा तक पंहुचे हो |

    उसके बाद वे शिप्रा का जल ले गये और सभी कुण्ड में छिड़क दिया और वे कुण्ड फिर से अमृत से भर गये, इसलिये शिप्रा नदी को “अम्रतोद्भवा” भी कहा जाता है |

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    शिप्रा नदी के किनारे स्थित घाट –

    इस नदी के किनारे अनेक घाट स्थित है और इन घाटों का अलग-अलग महत्व है | इस नदी पर स्थित रामघाट को मुख्य घाट माना जाता है | कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था इसलिये रामघाट का एक विशेष महत्व है | इसके आलावा इसके किनारे और भी घाट है जसे गंगा घाट, नृसिंह घाट, गंधर्व तीर्थ और पिशाचमोचन तीर्थ आदि घाट शिप्रा नदी के तट पर है |

     

    शिप्रा नदी का संगम –

    शिप्रा नदी अपने उद्गम स्थल से निकलकर इंदौर, देवास, उज्जैन, और मंदसौर जिले तक का सफ़र तय करते हुए आगे चलकर चम्बल नदी में प्रवेश करती है |

     

    कुल मिलाकर –

    शिप्रा नदी एक पवित्र नदी है और इस नदी में लोग दूर दूर से स्नान करने के लिए आते है | इसके किनारे हर बारह वर्ष में कुम्भ का मेला लगता है और इसका एक अलग ही महत्व है |

    उज्जैन में इस नदी के तट पर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक महाकालेश्वर ज्योर्तिर्लिंग भी है इसके अलावा इसके तट पर अनेक मंदिर है |

    FAQs -

    उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे कौनसी ज्योतिर्लिंग है ? 

    शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन शहर में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है | 


    क्या उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे कुम्भ का मेला लगता है ? 

    जी हाँ, मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में प्रत्येक बारह साल में कुम्भ का मेला लगता है, जिसे सिंहस्थ पर्व कहा जाता है | 


    उज्जैन में कितनी नदियों का संगम हुआ है ? 

    उज्जैन शहर में एक स्थान है, जिसका नाम त्रिवेणी संगम नवग्रह मंदिर है,  जिसे त्रिवेणी घाट कहा जाता है और इस स्थान पर शनिश्चरी अमावस्या के दिन हजारों लाखों लोग स्नान करने के लिए आते है | 

    यह स्थान पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है और यहाँ पर शिप्रा नदी, ख्याता नदी और सरस्वती नदियों का संगम होने की वजह से ही इस स्थान को त्रिवेणी संगम कहा जाता है | 


    शिप्रा नदी किसकी सहायक नदी है ? 

    शिप्रा नदी चम्बल नदी की एक सहायक नदी है, जो कि राजस्थान में जोगणिया माता मंदिर से थोड़ी ही दुरी पर चम्बल नदी में मिल जाती है |